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Friday, February 18, 2011

मीडिया में नारी शोषण .............

मीडिया में नारी शोषण .............
( तोशी गुप्ता / रायपुर ) 
नारी कुदरत क़ी बनाई अनिवार्य रचना है ,जिसके उत्थान हेतु समाज के बुद्धिजीवी वर्ग ने सतत संघर्ष किया है। आज क़ी बहुमुखी प्रतिभाशील नारी उसी सतत प्रयास का परिणाम है। आज नारी ने हर क्षेत्र में अपना प्रभुत्व कायम किया है, चाहे वह शासकीय क्षेत्र हो या सामाजिक, घर हो या कोर्ट कचहरी , डाक्टर, इंजिनीयर, अथवा सेना का क्षेत्र, जो क्षेत्र पहले सिर्फ पुरुषो के आधिपत्य माने जाते थे, उनमे स्त्रियों क़ी भागीदारी प्रशंसा का विषय है। इसी तरह प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया भी स्त्रीयों क़ी भागीदारी से अछूता नहीं है । प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया समाज के दर्पण होते है, जिसमे समाज अपना अक्श देखकर आत्मावलोकन कर सकता है । पिछले कई वर्षो से मीडिया में नारी क़ी भूमिका सोचनीय होती जा रही है। आज प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया जिस तरह नारी क़ी अस्मिता को भुना रहा है, वह जाने - अनजाने समाज को एक अंतहीन गर्त क़ी ओर धकेलते जा रहा है। इसका दुष्परिणाम यह है क़ी आज नारी ऊँचे से ऊँचे ओहदे या प्रोफेशन में कार्यरत क्यों ना हो वह सदैव एक अनजाने भय से ग्रसित रहती है। क्या है ये अनजाना भय ? निश्चित रूप से यह केवल उसके नारी होने का भय है जो हर समय उसे असुरक्षित होने का अहसास दिलाता रहता है। आलम यह है क़ी आज नारी घर क़ी चारदीवारी में भी अपनी अस्मिता बचने में अक्षम है। प्रारंभ में प्रिंट एवं इलेक्ट्रानिक मीडिया धार्मिक, सात्विक संदेशो द्वारा समाज को सही मार्गदर्शन देने का आधार था , लेकिन धीरे - धीरे उसका भी व्यवसायीकरण हो गया और झूठी लोकप्रियता भुनाने वह समाज के पथप्रेरक के रूप में कम और पथभ्रमित करने के माध्यम के रूप में अधिक नज़र आने लगा। शुरुआत हम छोटे परदे से करते है, जहा लगभग हर सीरीयल मे मानवीय संबंधो के आदर्श रूप को नकारते हुए नारी को एक ऐसी " वस्तु " के रूप में दर्शको के सामने परोसा जाता है, जंहा वह केवल एक भोग्या मात्र ही दिखाई जाती है। हर दूसरा सीरीयल नारी के पूज्यनीय चरित्र क़ी धज्जिया उडाता हुआ नज़र आता है। एक नारी पात्र ही दूसरी नारी पात्र पर शोषण और अत्याचार करती हुई नज़र आती है। नारी के विकृत रूप को दिखाने क़ी रही सही कसर एक ख्याति प्राप्त निर्देशिका के डेली सोप सीरीयलों ने पूरी कर दी जिसने रिश्तो क़ी सभी मर्यादाए तोड़ दी और कितने आश्चर्य क़ी बात है कि यही सब सीरीयल काउंट डाउन शो में अपनी सफलता के परचम गाड़ते हुए टाप नम्बरों पर होते है। इसी तरह यदि हम विभिन्न विज्ञापनों कि बात करे तो विज्ञापनों ने तो हमारी संस्कृति कि सीमा ही लाँघ दी। विज्ञापनों में नारी कि भूमिका कंही से भी विकृत नहीं बशर्ते कि उससे समाज को अच्छा सन्देश मिले लेकिन विज्ञापनों में नारी के नग्न रूप का प्रदर्शन समाज में नारी के प्रति आकर्षण नहीं बल्कि विकर्षण पैदा करता है । अप्रत्यक्ष रूप से ऐसा विज्ञापन समाज में गन्दी मानसिकता पनपने पर जोर देता है ओर सामाजिक अपराधो को बल मिलता है। बलात्कार, महिला शोषण, यौन शोषण आदि सब इसी विकर्षण का नतीजा है। अधिकतर विज्ञापनों में नारी देह प्रदर्शन ही देखने को मिलता है। किसी ने तर्क के आधार पर यह जानने का प्रयास ही नहीं किया कि देह प्रदर्शन के कारन बाजार में कोई वस्तु बिकती है या अपनी गुणवत्ता के कारन। किसी वस्तु को विज्ञापनों में देह प्रदर्शन के बिना प्रदर्शित किया जाये तो उसकी बिक्री कम होगी या नहीं होगी ऐसा कोई तर्क स्वीकार्य नहीं है। कितने अफ़सोस कि बात है कि आज किसी वस्तु के प्रचार - प्रसार के लिए एक नारी को किसी वस्तु कि तरह उपयोग किया जा रहा है। फिल्मो ने तो नारी देह के प्रदर्शन में सभी को पीछे छोड़ दिया , जंहा अभिनेत्रिया आपत्तिजनक अंगप्रदर्शन और दृश्य करने के बाद यह कहकर पल्ला झाड लेती है कि फला सीन में कोई बुराई नहीं है और यह तो फिल्म कि मांग और सिचुएशन के अनुरूप है। इससे शर्मनाक स्थिति और क्या हो सकती है जब स्वयं नारी ही एक अनुचित प्रदर्शन को लेकर इस तरह का तर्क प्रस्तुत करे। " क्या कूल है हम..." "गरम - मसाला" , नो एंट्री जैसी घटिया कॉमेडी फिल्मे दर्शको के सामने परोसकर निर्माता - निर्देशक समाज को कौन सी दिशा देना चाहते है ये मेरी समझ से परे है । और उसके बाद निर्माता - निर्देशकों द्वारा यह टिपण्णी किया जाना कि ऐसी फिल्मे आज के दर्शको कि डिमांड है और यंग जेनरेशन के अनुरूप है, बहुत ही हास्यास्पद लगता है। निश्चित रूप से ये फिल्मे जो "ऐ " सर्टिफिकेट नहीं है (?) पुरे परिवार के साथ बैठकर देखी जा सकती है बशर्ते कि पूरा परिवार अलग -अलग कमरों में बैठकर फिल्मे देख रहा हो। प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में नारी देह के प्रदर्शन से फैलती गन्दी मानसिकता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दिल्ली के एक प्रतिष्ठित स्कूल की छात्रा का आपत्तिजनक एम् एम् एस किसी वायरस कि भाति लोकप्रिय (?) हो गया और इंदौर के किसी कालेज की लडकियों कि आपत्तिजनक तस्वीरे किसी "विशेष" इंटरनेट साईट पर देखी गई , जिससे लडकिया पूरी तरह अनजान थी। इस बढ़ते साईबर क्राइम का जिम्मेदार कौन है ? माना कि नारी सुन्दरता का प्रतीक है , और सुन्दर दृश्य मन को प्रफुल्लित करता है, परन्तु जब इस सौंदर्य कि सीमा लांघी जाती है, तो वही उसके बुरे स्वरुप का परिचायक बन जाता है। किसी भी देश और समाज कि उन्नति तभी संभव है , जब उस देश की, उस समाज की नारी का वंहा सम्मान हो। आज प्रिंट एवं इलेक्ट्रानिक मीडिया में नारी कि भूमिका में पर्याप्त सुधार की आवश्यकता है । हमें पाश्चात्य सभ्यता एवं वातावरण का अनुकरण ना करके समाज को भारतीय संस्कृति की ओर लौटने के लिए प्रेरित करना होगा । भोगवादी प्रवृत्ति को समाप्त करके ऐसा वातावरण बनाना होगा जंहा नारी को पूर्ववत आदर एवं सम्मान मिले। आज के इस भोगवादी समाज में नारी सम्मान के अपमान कि धृष्टता करने वालो को यह बताने कि आवश्यकता है कि नारी केवल सहनशीलता और त्याग कि मूर्ती नहीं है, बल्कि ज़रूरत पड़ने पर वह अपने ऊपर होने वाले अन्याय का मुहतोड़ जवाब देकर आत्मविश्वास के साथ सुखपूर्वक जीवन बिता सकती है। सबसे अहम् बात यह है कि प्रिंट एवं इलेक्ट्रानिक मीडिया में नारी कि भूमिका में बदलाव लाने के लिए पहला कदम स्वयं नारियों को ही उठाना होगा तभी यह सुधारवादी आन्दोलन सफलता प्राप्त करेगा और एक स्वस्थ और सुखी समाज कि कल्पना कि जा सकती है। (यह लेख हमनें तोशी गुप्ता के ब्लॉग 'तोशी 'से साभार लिया है . ब्लॉग का पता है - http://toshigupta.blogspot.कॉम )

Sunday, February 6, 2011

indian press council bhopal press complex m. p. 1


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मानवीय कचरे में तब्दील हो रहा है पत्रकार

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प्रदीप सौरभ (सबसे दाएं) प्रदीप सौरभ (सबसे दाएं)
दैनिक हिन्दुस्तान के वरिष्ठ पत्रकार व उपन्यासकार प्रदीप सौरभ्ा ने कहा है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में असहमतियों का अहम स्थान है। असहमतियों को पत्रकारिता में उचित स्थान मिलता था, पर आज पत्रकारिता में असहमतियां गायब हो रही हैं तथा विचारों को लगभग समाप्त करने का प्रयास किया जा रहा है। आज बडे संस्थान सहित मीडिया हाउस बडी संख्या में युवाओं को रोजगार दे रहे हैं इन संस्थानों में युवाओं पर कार्य का भारी दबाव होता है तथा लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए निश्चित समय सीमा भी होती है इस दबाव के बोझतले युवा इतना दब जाता है कि जब उनकी उम्र 40 के पार करती है तबतक उनकी रचनात्मकता समाप्त होने के कगार पर होती है और उनका स्वरूप निर्जीव प्राणी की तरह होता है जिसे मानवीय कचरा कहा जा सकता है। आज न केवल भारत में अपितु पूरे विश्व में मानवीय कचरे की संख्या में इजाफा हो रहा है।
पत्रकार प्रदीप सौरभ मंगलवार को महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के जनसंचार विभाग की ओर से आयोजित 'मीडिया संवाद' कार्यक्रम के तहत विशेष व्याख्यान देते हुए बोल रहे थे। व्याख्यान समारोह की अध्यक्षता जनसंचार के विभागाध्यक्ष प्रो.अनिल के.राय 'अंकित' ने की।
प्रदीप सौरभ ने कहा कि अब अखबार एक मुनाफा वाले कारोबार में तब्दील हो चुकी है और समाचार एक उत्पाद का रूप धारण कर चुकी है। दूसरे अर्थों में इसे प्रोडक्ट की संज्ञा दें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। लोकहित से जुडे सवालों के बरक्स बाजार के मुनाफे के गणित अखबारों पर हावी होती जा रही है। उन्होंने कहा कि यह परिवर्तन अचानक नहीं हुआ है। आज अखबारों में आम आदमी के सवालों से जुडी खबर या विचार के लिए जगह सिमटती जा रही है। विज्ञापन या अधिक मुनाफे की लालच ने पत्रकारिता में अन्तर्वस्तु और कलेवर को प्रभावित किया है। उन्होंने पत्रकारों का राजनीति से मिलीभगत की ओर इशारा करते हुए कहा कि आज मीडिया तंत्र का सत्तातंत्र से गठजोड भी बन रहा है। अब अखबारों का धार्मिक अस्मिताओं या इस तरीके की अन्य अस्मिताओं के निर्माण में धडल्ले से इस्तेमाल किया जा रहा है। गुजरात इसका ज्वलन्त उदाहरण है, वहां के कुछ अखबारों ने कम्यूनल डिवाइड के द्वारा हिंसा को ज्यादा व्यापक स्वरूप प्रदान किया। वैकल्पिक मीडिया पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि यह भविष्य की मीडिया है, इसमें ब्लॉग्स या सोशल साईट्स की भूमिका महत्वपूर्ण होगी। हाल के दिनों में इन माध्यमों के द्वारा जागरूकता और लोकहित से जुडे सवालों को दमदार तरीके से उठाया जा रहा है।
अध्यक्षीय वक्तव्य में जनसंचार के विभागाध्यक्ष प्रो. अनिल के.राय 'अंकित' ने शीत सत्र में छात्रों का स्वागत करते हुए कहा कि यह हर्ष की बात है कि पत्रकारिता के तमाम बदलावों को अक्षरांकन करने वाले जीवट पत्रकार प्रदीप सौरभ्ा के व्याख्यान से सत्रारंभ्ा हो रहा है। पत्रकार सौरभ के व्यक्तित्व व कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि इन्होंने केवल ड्राइंग रूम में बैठकर खबरों या विचारों को नहीं लिखा है, बल्कि दिल्ली से लेकर उत्तर पूर्व तक और गुजरात दंगों के समय देश के विभिन्न हिस्सों में घूमकर शोधपरक व प्रयोजनमूलक खबर या विचार लिखे। इनके पत्रकारीय कौशल का ही परिणाम था कि असहमति के लिए खतम हो रही व्यवस्था में भी अपनी बात को जीवटता से रखा। इनका पत्रकारिता मूल्य सदैव हाशिए के लोगों के लिए समर्पित रहा है। संचालन जनसंचार के छात्र अनुज शुक्ल ने किया। इस अवसर पर जनसंचार के रीडर डॉ. कृपाशंकर चौबे, असिस्टेंट प्रोफेसर अख्तर आलम सहित विभाग के शोधार्थी व विद्यार्थी बडी संख्या में उपस्थित थे।

यह वीकली अखबार तो बड़ा क्रांतिकारी निकला!



Friday, 07 January 2011 16:24 यशवंत सिंह // भड़ास4मीडिया


एक वीकली अखबार है, 'टाइम्स ऑफ क्राइम' नाम से। इसने जाने कहां से स्विस बैंक में जमा भारतीय नेताओं की रकम का पता लगा लिया है और नाम सहित रकम का खुलासा कर दिया है. इस बारे में एक मेल भड़ास4मीडिया के पास आई है. मेल भेजने वाले की आईडी

prashantshrivastava.007@gmail.com है. साथ में एक लेख और दो अटैचमेंट है. एक अटैचमेंट में प्रकाशित खबर है तो दूसरे में वीकली न्यूजपेपर का मुखपत्र. प्रशांत श्रीवास्तव द्वारा भोपाल डेटलाइन से लिखित लेख में जो कुछ प्रमुख बात है, वो इस प्रकार है-
''कालेधन को भारत वापस लाने के लिए समय-समय पर नेताओं ने अपने-अपने तर्क दिए. सरकारों ने ही पहल कर जनता के सामने यह संदेश दिया कि हम स्वच्छ साफ छवि के हैं. कई नेताओं ने तो कालेधन पर अपना चुनावी एजेंडा तक बना डाला. परंतु क्या मालूम था जिसे वे चुनावी एजेंडा बना रहे हैं वही आगे चलकर उनकी गले की फांस बन जाएगा. सरकार तो आज तक कालेधन को वापस लाने की बात कही करती रही लेकिन एक संस्था ने भारत के राजनेताओं द्वारा स्विस बैंक में लगभग 70 हजार करोड़ रुपये जमा कराए जाने की सूची उजागर की है जिसमें कांग्रेस-भाजपा के अलावा तमाम राजनीतिक दलों से जुड़े नेताओं के नामों और उनके धन की जानकारी दी गई है. इस सूची के आते ही तमाम पार्टियों में हड़कंप मच गया है और उन्हें यह समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर स्विस बैंक की गोपनीय जानकारी आखिरकार बाहर कैसे आ गई. यह खबर साप्ताहिक टाइम्स ऑफ क्राइम समाचार पत्र ने प्रकाशित की है। यह खबर http://tocnewsindia.blogspot.com नामक वेबसाइट पर भी है, जो इसी वीकली न्यूजपेपर की साइट है.। चलिए हम आपको बात देते हैं कि यह कारनामा किया है गुजरात के अंकलेश्वर के रहने वाले एके बकानी ने. इनके माध्यम के जारी सूची में तमाम नेताओं के धन का विवरण उपलब्ध कराया गया है. इस सूची को जारी करने वाली संस्था हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र सेना (इंडिया) का दावा है कि ये जानकारी पूरी तरह तथ्यात्मक है और स्विस बैंक के सूत्रों के हवाले से दी गई है. संस्था का कार्यालय उत्तर प्रदेश के गोड़ा जिले के बकासिया गांव में स्थित है. सूची में 152 लोगों के नाम एवं कोड सहित संपत्ति का पूर्ण विवरण दिया गया है. इस सूची में कांग्रेस-भाजपा के दिग्गज नेताओं के नाम उजागर हुए हैं. सूची में सबसे पहला नाम देश की विख्यात नेत्री श्रीमती इंदिरा गांधी का है, जिसमें कहा गया है कि उन्होंने स्विटजर लैंड में करीबन दस क्विंटल सोना, सौ किलो चांदी, और भारत में भुगतान किए जाने वाले दो करोड़ रुपए जमा कराए थे, उनके खाते का कोड क्रमांक नहीं दिया गया है. जबकि उनके पुत्र संजय गांधी के खाते को एसजीएलएफ ओ स्विटजरलैंड नाम से दर्शाया गया है, इस खाते में एक हजार एक सौ ग्यारह किलो सोना और छह सौ बावन किलो हीरे और भारत में भुगतान किए जाने वाले पचास लाख रुपए जमा कराए गए थे. इसी तरह राजीव गांधी का खाता क्रमांक एलसीटीएस सात सौ किलो सोना, 125 किलो चांदी, 352 किलो हीरे और भारत में भुगतान किए जाने वाले 352 लाख रुपए रखकर संचालित किया जाता है. संस्था के सूत्र बताते हैं कि इन खातों के संचालन के लिए स्विस बैंकों की ओर से विशेष घड़िय़ां और अंगूठियां जारी की जाती है. इन्हें लेकर जाने वाला व्यक्ति इन खातों को संचालित कर सकता है. यदि किसी खाता धारक का निधन भी हो जाता है तो उसके परिजन इस विशेष प्रतीक के माध्यम से उस खाते को संचालित कर सकते हैं. यदि कोई व्यक्ति इस प्रतीक को चुरा भी लेता है तो वह भी इस खाते का संचालन कर सकता है. स्विस बैंकों में गुप्त धन रखने के लालची ऐसा नहीं कि सिर्फ कांग्रेसी हैं इन नामों की सूची में भाजपा के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी का नाम भी है. पिछले लोकसभा चुनावों के दौरान श्री आडवाणी ने स्विस बैंक में जमा धन की वापसी के लिए बाकायदा प्रचार अभियान छेडा था, लेकिन सूची के मुताबिक श्री आडवाणी का भी खाता स्विस बैंक से मौजूद है. एनएसओएल नाम से खोले गए इस खाते में 552 किलो सोना, 152 किलो हीरे, और भारत में भुगतान किए जाने वाले साठ लाख रुपए शामिल हैं. भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा ने स्विस कोड क्रमांक एपीपीपीएन के माध्यम से कथित तौर पर दो सौ दस किलो सोना, सत्तर किलो चांदी, सत्तर किलो हीरे और भारत में घर पर दिए जाने वाले छिहत्तर लाख दस हजार रुपए जमा कराए हैं. इसी तरह मप्र नगरीय प्रशासन मंत्री बाबूलाल गौर ने स्विस बैंक कोड क्रमांक एसएनकेवी के माध्यम से 79 किलो 900 ग्राम सोना, और 119 करोड़ दस लाख रुपए भारत में भुगतान की जाने वाली मुद्रा जमा कराई है. कांग्रेस के दिग्विजय सिंह, कोड क्र. वायजीकेएस माध्यम से 112 किलो सोना, 18 किलो हीरे, चार करोड़ रुपए, कमला नाथ कोड क्र. जेओवायएएन के माध्यम से 310 किलो सोना, 117 किलो चांदी, 120 किलो हीरे, एक करोड़ अड़सठ लाख की राशि जमा कराई गई है.''
तो ये था प्रशांत श्रीवास्तव का आलेख. उन्होंने अपने लेख में कुछ तथ्य और आंकड़े आदि दिए हैं. पर ये आंकड़े, नाम, राशि आदि कितने सच हैं, इसकी भड़ास4मीडिया अपने स्तर पर नहीं कर पाया है. यह खबर हम इसलिए प्रकाशित कर रहे हैं ताकि इस वीकली अखबार में प्रकाशित तथ्यों की पड़ताल की जा सके. जाहिर है, पड़ताल का काम आसान नहीं होगा और जिन-जिन दिग्गजों के नाम प्रकाशित हुए हैं वे अपनी मानहानि के संबंध में दावा भी ठोंक सकते हैं. इतने सारे खतरों के बावजूद अगर इस वीकली ने दावे के साथ इस खबर को प्रकाशित किया है तो एक संभावना यह भी है कि इस अखबार के पास पर्याप्त सुबूत हैं. अगर पर्याप्त सुबूत हैं तो फिर ये खबर अभी तक दबी क्यों हुई है. इसे तो इस साल की सबसे बड़ी खबर बन जाना चाहिए था. सो, शंका ये भी है कि वीकली न्यूजपेपर ने किन्हीं संस्था के दावे पर भरोसा कर खबर का प्रकाशन तो कर दिया लेकिन इस वीकली अखबार का सरकुलेशन कम होने या छोटा अखबार होने के कारण खबर की चर्चा नहीं हो पाई और अखबार के संपादक - प्रकाशक को संभावित मुश्किलों से दो-चार नहीं होना पड़ा है. यह खबर आकाशमेल डाटकाम नामक वेबसाइट पर भी है, इस साइट तक http://www.aakashmail.com/ के जरिए पहुंच सकते हैं।
देखना ये है कि इस वीकली अखबार के क्रांतिकारी कारनामे की खबर प्रकाशित होने के बाद देश की मीडिया, पत्रकार, नेता आदि किस तरह रिएक्ट करते हैं। खुले दिमाग से यह अपील करता है कि इस प्रकरण के बारे में जिसे जितनी जानकारी हो वह कमेंट के माध्यम से नीचे देने की कृपा करे ताकि इस प्रकरण की सच्चाई की छानबीन हो सके. फिलहाल तो खबर पढ़ने के बाद आप भी कह ही देंगे- ये वीकली अखबार तो बड़ा क्रांतिकारी निकला!

बैतूल: जिला कलैक्टर ने दी अपाहिज पत्रकार को एक महिने के अंदर जिला बदर की धमकी

गवाहो का अवसर समाप्त करने एवं फरियादी के आवेदन को किया निरस्त
toc news internet channel (टाइम्स ऑफ क्राइम)

बैतूल। ''मैं इस जिले का मालिक हँू जो चाहुंगा वहीं होगा एक महिने के अंदर इसे जिले के बाहर करके ही दंभ लूंगा ...... उक्त धमकी भरी बाते बैतूल जिले के विवादास्पद जिला कलैक्टर विजय आनंद कुरूील ने विगत 28 सालो से पत्रकारिता के क्षेत्र में अग्रणी बैतूल जिले के वरिष्ठ पत्रकार एवं राष्ट्रीय हिन्दी दैनिक पंजाब केसरी के बैतूल ब्यूरो रामकिशोर पंवार को दी। श्री पंवार के विरूद्ध दर्ज चौदह मामलो में ऐसे कोई भी संगीन अपराध नही है जिससे किसी को जान माल का खतरा हो तथा श्री पंवार उन मामलो में से 12 मामले में न्यायालय द्वारा बरी किये जाने के बाद भी उसके खिलाफ वैमनस्ता पूर्वक जिला बदर की कार्यवाही की जा रही है।श्री पंवार का बीते दो वर्ष पूर्व 26 अप्रेल 2009 में एक वाहन दुर्घटना में अपंगता आ गई थी। बैतूल जिला चिकित्सालय के मेडिकल बोर्ड द्वारा 45 प्रतिशत विकलांगता प्रमाण पत्र जारी किये जाने तथा दो वर्षो तक इलाज करवाये जाने के प्रमाण पत्र के बाद भी कलैक्टर द्वारा दो वर्षो से डाक्टरो की सलाह पर बेड रेस्ट एवं इलाज करवा रहे पत्रकार श्री पंवार को परेशान करने की नीयत से उसके खिलाफ जिला बदर की कार्यवाही की जा रही है। ताजी घटना के अनुसार जब अपनी पेशी पर उपस्थित हुये पत्रकार रामकिशोर पंवार को जिला कलैक्टर - जिला मजिस्टेज द्वारा पेशी के दौरान अपामानित करते हुये धमकी दी कि वे किसी भी सूरत में इसे जिला बदर करके ही दंभ लेगें। प्रकरण में श्री पंवार के अधिवक्ता द्वारा एक आवेदन प्रस्तुत करके गवाहो को समंस जारी करके उन्हे बुलवाने का अनुरोध किया गया जिसे निरस्त करते हुये कलैक्टर ने आगामी पेशी को सभी गवाहो को एक साथ बुलवा कर एक ही दिन में पूरी गवाही सुबह से शाम तक गवाही लेकर अगली पेशी के पूर्व गवाह अवसर समाप्त करके इस माह के अंत तक जिला बदर करने की धमकी तक दे डाली। अपाहिज पत्रकार अपने पुत्र के सहारे बैसाखी लेकर पेशी तारीख पर बीते एक लगभग पौन वर्ष से आ रहा है। वह एक भी पेशी पर अनु उपस्थित नही रहा।जबकि जिला मजिस्टेज अनेक बार अनुउपस्थित रहे पूरे पौने एक साल में मात्र छै लोगो की ही गवाही हो सकी जबकि पत्रकार रामकिशोर पंवार द्वारा अपने चाल - चरित्र एवं कार्यशैली को लेकर जिला मुख्यालय के 20 लोगो की गवाही की सूचि प्रस्तुत की गई थी। बैतूल जिला कलैक्टर एवं मजिस्टेज द्वारा पत्रकार रामकिशोर पंवार को इस तरह डराने एवं धमकाने के बाद श्री पंवार ने प्रदेश के मुख्यमंत्री से लेकर प्रेस कौेंसिल आफ इंडिया के अध्यक्ष एवं मानव अधिकार आयोग तक शिकायत प्रस्तुत की है। पत्रकार रामकिशोर पंवार द्वारा प्रस्तुत तीन अलग - अलग जालसाज के तीन परिवादो को न्यायालय से वापस लेने के लिए दबाव डाला जा रहा था। श्री पंवार द्वारा प्रस्तुत परिवाद के खात्मा का दो बार पुलिस प्रयास कर चुकी लेकिन जालसाजी के मामले में न्यायालय द्वारा परिवाद को समाप्त करने के पुलिस के आग्रह को अस्वीकार किये जाने के बाद जालासाजी के आरोपियो द्वारा पुलिस एवं प्रशासन की मदद से पत्रकार रामकिशोर पंवार को परेशान किया जा रहा है। पत्रकार रामकिशोर पंवार द्वारा प्रस्तुत जालसाजी के मामले मेें पांच आरोपियो में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष प्रभात झा की कथित मुंहबोली मां श्रीमति उर्मिला भार्गव , दो भाई मयंक भार्गव एवं मयूर भार्गव भी जिन्हे न्यायालय द्वारा दर्ज जालसाजी के प्रकरणो में पुलिस से बचाने के लिए राजनैतिक दबाव भी प्रशासन एवं पुलिस पर डाला जा रहा है। हाल ही में बैतूल आये प्रदेश भाजपा अध्यक्ष इन जालसाजी के तीन आरोपियो के घर पर रूके भी एवं वहां पर आयोजित कार्यक्रम में भाग भी लिया। इधर बैतूल कलैक्टर विजय आनंद कुरील द्वारा पत्रकार रामकिशोर पंवार को अपने न्यायालय में डराने एवं धमकाने तथा उन्हे हर हाल में एक माह के भीतर जिला बदर किये जाने की धमकी को लेकर पत्रकार संगठनो ने भी आवाज उठाई है। पत्रकार संगठनो का आरोप है कि बैतूल कलैक्टर के न्यायालय में बलातकार - हत्या - लूट - डकैती जैसे संगीन अपराधो के आदतन अपराधियो के जिला बदर के मामले नही चल रहे है और जो चल भी रहे है वे बरसो से ज्यों के त्यों पड़े हुये है। श्री पंवार को परेशान किये जाने एवं उसकी अपंगता के चलते पूरे परिवार को ही परेशान किये जाने की घटना को लेकर पत्रकार एवं पत्रकार संगठन बडे स्तर पर आन्दोलन की रूपरेखा तैयार करने में लग गये है।

पत्रकारों के वेतन में 65 फीसदी बढ़ोत्तरी की सिफारिश

प्रेसेंट : toc news internet channel (टाइम्स ऑफ क्राइम)

पत्रकारों और गैर पत्रकारों के लिए गठित मजीठिया वेज बोर्ड ने अखबारी और एजेंसी कर्मियों के लिए 65 प्रतिशत तक वेतन वृद्धि की सिफारिश की है तथा साथ में मूल वेतन का 40 प्रतिशत तक आवास भत्ता और 20 प्रतिशत तक परिवहन भत्ता देने का सुझाव दिया है। न्यायमूर्ति जी आर मजीठिया के नेतृत्व वाले वेतन बोर्ड ने आज यह भी सिफारिश की कि नए वेतनमान जनवरी 2008 से लागू किए जाएं।
बोर्ड ने पहले ही मूल वेतन का 30 प्रतिशत अंतरिम राहत राशि के रूप में देने का ऐलान कर दिया था। मजीठिया ने केन्द्रीय श्रम सचिव पी के चतुर्वेदी को रपट सौंपी। चतुर्वेदी ने आश्वासन दिया कि सरकार इस रपट की समीक्षा करने के बाद इसे जल्द से जल्द लागू कराने का प्रयास करेगी।बोर्ड ने 35 प्रतिशत वैरिएबल पे देने की सिफारिश की है। समाचार पत्र उद्योग के इतिहास में किसी वेतन बोर्ड ने इस तरह की सिफारिश पहली बार की है। मजीठिया वेतन बोर्ड ने पत्रकारों और अन्य अखबारी कर्मचारियों की रिटायरमेंट आयु बढाकर 65 साल करने, महंगाई भत्ते के मूल वेतन में शत प्रतिशत न्यूट्रलाइजेशन और विवादों के निपटारे के लिए स्थाई न्यायाधिकरण बनाने की सिफारिश की है। न्यायमूर्ति मजीठिया ने संवाददाताओं से कहा कि इस बार की रपट में सबसे निचले गे्रड के लिए भी अछ्छे वेतन की सिफारिश की गई है। उन्होंने कहा कि नए फार्मूले के अनुसार पत्रकार और गैर पत्रकार कर्मचारियों का मूल वेतन उसके वर्तमान मूल वेतन और डीए में, 30 प्रतिशत अंतरिम राहत राशि और 35 प्रतिशत वैरिएबल पे को जोडकर तय किया गया है। महंगाई भत्ता मूल वेतन में शत प्रतिशत ‘ न्यूट्रलाइजेशन’ के साथ जुडेगा। ऐसा अब तक केवल सरकारी कर्मचारियों के मामले में होता आया है। वेतन बोर्ड ने 60 करोड़ रूपए या इससे अधिक के सकल राजस्व वाली समाचार एजेंसियों को शीर्ष श्रेणी वाले समाचार पत्रों के साथ रखा है।
इस प्रकार समाचार एजेंसी पीटीआई शीर्ष श्रेणी में जबकि यूएनआई दूसरी श्रेणी में रखी गई है।मजीठिया बोर्ड की सिफारिशों के अनुसार आवास भत्ता एक्स श्रेणी के शहरों के लिए मूल वेतन का 40 प्रतिशत होगा, जो दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, बेंगलूर, हैदराबाद, चंडीगढ, अहमदाबाद, कानपुर, लखनऊ और नागपुर पर लागू होगा। वाई श्रेणी के शहरों के लिए यह मूल वेतन का 30 प्रतिशत होगा। वाई श्रेणी के शहरों में आगरा, अजमेर, अलीगढ, इलाहाबाद, अमृतसर, बरेली, बीकानेर, भोपाल, भुवनेश्वर, कोयंबटूर, दुर्गापुर, गुवाहाटी, ग्वालियर, इंदौर, जबलपुर, जयपुर, जालंधर, जमशेदपुर, कोच्ची, कोटा, मदुरै, मेरठ, पटना, पुणे, रायपुर, राजकोट, रांची, श्रीनगर, सूरत, तिरूवनंतपुरम, वडोदरा, वाराणसी, विशाखापटटनम, मंगलौर, पुडुचेरी, धनबाद, देहरादून, जम्मू, जामनगर आदि शामिल हैं। शेष अन्य शहरों को जेड श्रेणी में रखा गया है, जहां के कर्मचारियों को एचआरए मूल वेतन का 20 प्रतिशत मिलेगा।
By visfot news

रतलाम में पुलिस की मार से पत्रकार की हालत गंभीर

अस्‍पताल में भर्ती गोपाल जी आईसीयू में चल रहा है इलाज

खबर छापने से नाराज सिटी एसपी महेन्‍द्र तारनेकर ने सिपाहियों से पिटवाया


रतलाम में पुलिस ने एक पत्रकार को इस कदर पीटा की उनकी हालत गंभीर हो गई है. उन्‍हें आईसीयू में भर्ती कराया गया है. मध्‍य प्रदेश में पुलिस और बदमाश दोनों का कहर पत्रकारों पर लगातार टूट रहा है. पत्रकार गोपाल सिंह कुशवाहा की गलती इतनी थी कि उन्‍होंने रतलाम के सिटी एसपी के खिलाफ एक खबर अपने अखबार में छाप दी थी.
जानकारी के अनुसार रतलाम शहर में लगभग तीन महीने पूर्व एक डीजल टैंकर कांड हुआ था. जिसमें सिटी एसपी महेन्‍द्र तारनेकर और उनके अधीनस्‍थ दो सिपाहियों ने अवैध केरोसिन छिपा कर ले जा रहे एक टैंकर को पकड़ा था. उन्‍होंने टैंकर मालिक से वाहन छोड़ने के नाम पर लगभग ढाई लाख रुपये वसूले थे. यह मामला रतलाम में काफी चर्चा में रहा था. गोपाल सिंह कुशवाहा (55 वर्ष) ने इसी से संबंधित खबर कुछ दिन पूर्व अपने साप्‍ताहिक अखबार साधना टुडे में छापी थी.
गोपाल सिंह कुशवाहा ने बताया कि कल सिटी एसपी अतिक्रमण हटवा रहे थे. मै भी वहां मौजूद था. अतिक्रमण हटाते हुए जब यह दल लोखन टाकीज चौराहा पर पहुंचा तो मुझे सिटी एसपी ने अपने दो सिपाहियों को भेजकर बुलवाया. उनके सिपाहियों ने मुझसे कहा साहब बुला रहे हैं कुछ बात करना है. मेरे पहुंचते ही उन्‍होंने कहा कि तू बहुत बड़ा पत्रकार हो गया है. मेरे खिलाफ खबर छापता है. तूझे मेरे बारे में पता नहीं है. तेरे जैसे ही एक पत्रकार की जो हालत की थी, आज तेरी हालत भी वैसी ही करूंगा. इसके बाद उन्‍होंने अपने तीन सिपाहियों को मुझे मारने के लिए निर्देशित किया.
गोपाल ने बताया कि तीनों सिपाही इसके बाद सबके सामने मुझ पर टूट पड़े. मुझे बहुत मारा-पीटा गया. इसके बाद सिटी एसपी के आदेश के बाद मुझे सिपाहियों ने गाड़ी में पटक दिया और मुझे थाने ले जाया गया. गाड़ी में भी सिपाही और सिटी एसपी मुझे मारते रहे. गाड़ी से उतार कर थाने में भी मुझे मारा-पीटा गया. इसी बीच घटना की जानकारी होने पर स्‍थानीय विधायक पारस सकलेचा ने जब सिटी एसपी को फोन किया तब मेरे साथ मारपीट बंद किया गया. इसके बाद मुझे थाने में बैठाये रखा गया.
उन्‍होंने बताया कि जब घटना की जानकारी होने पर मेरा पुत्र तथा कुछ पत्रकार पहुंचे तो सिटी एसपी ने मेरे बेटे से भी बहस की और धमकी दी. उन्‍होंने मेरे लड़के से कहा कि तूझे समझाया था ना कि अपने बाप को रोक, उसे समझा कि मेरे खिलाफ खबर ना छापे. लेकिन तब तूझे मेरी बात समझ में नहीं आई थी. गोपाल ने कहा कि मेरी हालत खराब होने पर मेरे पुत्र तथा अन्‍य लोगों ने मुझे इलाज के लिए अस्‍पताल में भर्ती करवाया. मेरी हालत ज्‍यादा खराब हो गई तो मुझे आईसीयू में भर्ती कराना पड़ा.
उन्‍होंने बताया कि उस टैंकर स्‍कैंडल में लिखित कम्‍पलेन हुई थी. जिसके आधार पर मैंने यह खबर छापी थी. इन लोगों द्वारा छोड़ा गया टैंकर राजस्‍थान में पकड़ा गया. इसकी जांच चल रही है. उन्‍होंने बताया कि उस टैंकर मालिक के खिलाफ मध्‍य प्रदेश, राजस्‍थान तथा गुजरात में भी कई मामले चल रहे हैं. इसके बाद भी सिटी एसपी ने उसे पकड़ने के बाद पैसे लेकर छोड़ दिया था. जब मैंने तमाम सबूतों के बाद खबर लिखी तो मेरे साथ यह बर्ताव किया गया.